संपत्ति विवाद की वजह से यह मंदिर धार्मिक गतिविधियों के लिए प्रतिबंधित था. साल 2013 में एक गैर सरकारी संगठन ने पेशावर उच्च न्यायालय की ऐबटाबाद पीठ के समक्ष याचिका दायरा की थी
कि उन्होंने कानूनी मालिक से यह संपत्ति खरीदी है. याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि बंटवारे के बाद से यह एनजीओ इस मंदिर की देखभाल करता आ रहा है.
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