यह टुकड़ी हमारी बटालियन की एक अहम् टुकड़ी थी, जिसको सबसे पहले टाईगर हिल टॉप पर जा करके फतह करनी थी और उस रास्ते से जाकर फतह करनी थी जिस रास्ते से पाकिस्तानी यह सोच भी नहीं सकते थे कि यहाँ से भी इन्डियन आर्मी ऊपर आ सकती हैं I
साथियों …! 2 जुलाई 1999 को हमनें टाइगर हिल टॉप पर चढ़ाई करने की तैयारी शरू कर दी और उसी दिन शाम को साढ़े 6 बजे हमनें चढ़ना भी शुरू कर दिया I तीन दिन 2 रात की लगातार यात्रा करने के बाद 5 जुलाई 1999 को सुबह हम उस टाइगर हिल टॉप पर चढ़ पाए, सुबह का वक्त था रास्ता इतना कठिन था कि रस्सों का सहारा लेकर, एक दूसरे का सहारा लेकर साथी चढ़ सके, बर्फीली आंधियां चल रही थी मुंह पर थपेड़े से मार रहे थे लेकिन उन सभी की परवाह न करते हुए हम आगे बढ़ रहे थे I
उसी क्षण हमारे ऊपर दुश्मन का फायर आया जिस रास्ते से हम चढ़ रहे थे उस रास्ते के दोनों तरफ नाले थे और नालों में दुश्मनों का बंकर था अँधेरे की वजह से हम बंकरों को नहीं देख पाए और उन्होंने हमारे ऊपर फायर कर दिया, अँधाधुंध गोला बारी शरू हो गयी तक़रीबन दिन के साढ़े 10 बज चुके थे, पांच घंटे की फायरिंग में दुश्मन यह अंदाजा नहीं लगा पाया कि यहाँ इंडियन आर्मी के कितने जवान आये हैं I
हम सात जवानों ने यह दिखा दिया कि यहाँ पर हम 7 जवान नहीं बल्कि 700 जवान हैं लेकिन तक़रीबन 11 बजे दुश्मन की एक छोटी सी टुकड़ी हमको देखने के लिए आई कि वास्तव में यहाँ पर कम जवान हैं या फिर ज्यादा जब वह हमारे बिलकुल नजदीक आये तो हमने उनपर फायरिंग शुरू कर दिया जिसमें 8 को मौत के घाट उतार दिया और 2 को घायल कर दिया, लेकिन उन दोनों सैनिकों ने अपने कमांडर को बता दिया कि वहां पर केवल हिन्दुस्तान के केवल 7 जवान हैं तब उनके कमांडर ने फिर से प्लानिंग की और दोबारा करीब आधे घंटे के बाद उन्होंने फिर से हमारे ऊपर अटैक किया, वह तक़रीबन 70 आदमी हमारे ऊपर अटैक करने के लिए आये ऊपर से ही उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया, अल्लाह हु अकबर के नारे लगाने शुरू कर दिया, हम इंतज़ार करने लगे कि दुश्मन जैसे ही हमारे नजदीक आएगा हम उनके ऊपर अंधाधुंध फायरिंग करके टूट पड़ेंगे, क्योकि हमारे पास अब हथियारों की कमी हो रही थी नीचे से सप्लाई हो नहीं पा रही थी I