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ये चारों विचारधारा तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह को इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग के रूप में देखता है। दूसरे देशों में इस्लाम की दूसरी विचारधारा को मानने वाले यदि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून बनाते हैं, तो वह भारत के मुसलमानों को लिए मान्य नहीं हो सकता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन दलीलों को भी खारिज कर दिया है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसे रिवाज आम नागरिकों को संविधान से मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। बोर्ड का कहना है कि संविधान ने अल्पसंख्यकों को अपने धर्म और रीति-रिवाज को मानने की पूरी आजादी देता है और अन्य किसी भी अधिकार की आड़ में इससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।
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