दरअसल, राज्य सरकारें और क्षेत्रीय दल अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को हवा देती रहती है। आयोग बनने से उनके इस वोट बैंक को लुभाने की रणनीति में खासा झटका लगेगा। उल्लेखनीय है कि कई राज्यों में तमाम क्षेत्रीय दलों की राजनीति पिछड़ों के इर्द-गिर्द घूमती है। यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, कनार्टक, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर ओबीसी हैं। इस फैसले के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है कि खुद बीजेपी की अभी तक ओबीसी वर्ग में सीधे पैठ नहीं रही हैं।
ऐसे में सत्ता में आने के लिए उसे हमेशा ओबीसी वर्ग तक पहुंचने के लिए अपने साथी दलों की जरूरत पड़ती रही है। बिहार में बीजेपी ने लालू के सामने कुर्मी वोट को पाने लिए नीतीश का हाथ थामा था, नीतीश के अलग होने पर उपेंद्र कुशवाहा का साथ लिया। इसी तरह से यूपी में यह कोशिश अपना दल के जरिए की गई। ऐसे में नए आयोग के जरिए केंद्र में मौजूद बीजेपी ओबीसी वर्ग के बीच पहुंच बनाने के लिए अपनी तरह से इबारत लिखना चाहेगी।