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यह पूछे जाने पर कि युद्ध के हालात में क्या चीन उत्तर कोरिया से उस संधि को समाप्त कर लेगा जिसके तहत ऐसी स्थिति में एक दूसरे की मदद के लिए सेना भेजने का प्रवाधान है, उनका कहना था कि जिस वक्त यह हुई थी उस वक्त माहौल कुछ और था आज कुछ और है। आज यह संधि उतनी प्रासंगिक नहीं है जितनी उस वक्त थी, लिहाजा युद्ध की सूरत में चीन इससे पीछे भी हट सकता है। चीन के लिए ऐसे समय में अपने देश और अपने नागरिकों की सुरक्षा ज्यादा मायने रखेगी न कि उत्तर कोरिया। उत्तर कोरिया को रोकने के लिए अलका एक विकल्प उस पर दबाव बढ़ाने को भी मानती हैं।
उनका यह भी कहना है कि उत्तर कोरिया पर यदि अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान समेत अन्य देश दबाव बनाएंगे तो वह वार्ता की मेज पर आ सकता है। लेकिन इसमें भी कुछ मुश्किलें जरूर हैं। विदेश मामलों की जानकार होने की हैसियत से वह दक्षिण चीन सागर और उत्तर कोरिया को अलग-अलग मानती हैं। उनके मुताबिक उत्तर कोरिया के मुद्दे पर अमेरिका का साथ देना चीन के लिए अमेरिका के दबाव में आना नहीं होगा। चीन के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनाैती उत्तर कोरिया को वार्ता की मेज पर लाना है, यही उसके हित में भी है और वक्त की मांग भी यही है, क्योंकि युद्ध हुआ तो इसकी आग में चीन का झुलसना लगभग तय है।
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