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साल 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद 26 साल के अंतराल में पहली बार ऐसा हुआ है कि चालू खाता घाटे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की फंडिंग हो रही है. अब भारत का निर्यात आयात के मुकाबले बढ़ता जा रहा है. यह देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के पीएम मोदी की काबिलियत में निवेशकों के बढ़ते भरोसे का बड़ा संकेत है.
जिस वित्तीय घाटे की भरपाई अब तक विदेशी मुद्रा बाजार में कंपनियों द्वारा उधार लेने, एनआरआई की फंडिग और पोर्टफोलियो इन्फ्लो के जरिए होती थी, उसमें अब बदलाव दिखने लगे हैं. FDI में रिकॉर्ड बढ़ोतरी का इस्तेमाल कंपनियां और सेंट्रल बैंक पुराने उधारों को चुकता करने में कर रहे हैं.
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