“अब्दुल हमीद और दुश्मन के टैंक दोनों ही अपनी जगहों से एक-दूसरे पर गोलाबारी कर रहे हैं। दोनों के गोले अपने लक्ष्यों को भेद रहे थे lतभी वहां सिर्फ़ एक तेज़ आवाज़ के धमाके के साथ आग और धुआं रह गया। अब्दुल हमीद शहीद हो चुके हैं। इससे पहले उन्होंने दुश्मन के सात टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए।”
रचना बिष्ट रावत अपनी किताब “1965: स्टोरीस फ्रॉम दी सेकेंड इंडो-पाक वॉर” से अब्दुल हमीद की अतुलनीय साहस को सलाम करती हैं, तो पूरा हिन्दुस्तान उनकी शहादत पर भावुक हो जाता है।
तो आइए भारत के सच्चे सपूत अब्दुल हमीद को नमन करते हुए उनकी साहस और अतुलनीय बहादुरी की वह गाथा जानने की कोशिश करते हैं कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्या किया कि परवेज़ मुशर्रफ़ और उसकी सेना को पीठ दिखा कर भागना पड़ा।
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