सिर्फ दो दिन बचे हैं और सवाल वही—क्या इस बार भी आयकर रिटर्न की समयसीमा बढ़ेगी? 15 सितंबर 2025 की तय तारीख से पहले तक 12 सितंबर तक 5.95 करोड़ रिटर्न फाइल हुए हैं, जिनमें से केवल 3 करोड़ ई-वेरिफाइड हैं। मांग तेज है कि और समय दिया जाए, लेकिन वित्त मंत्रालय का रुख सख्त दिख रहा है—पहले ही 31 जुलाई से 45 दिन का अतिरिक्त समय मिल चुका है।
रिपोर्ट: नितिन
क्या डेडलाइन फिर बढ़ेगी?
वित्त मंत्रालय ने 7 सितंबर के रिमाइंडर में साफ संकेत दिए कि गैर-ऑडिट करदाताओं के लिए आगे का विस्तार मुश्किल है। तर्क यह है कि ITR फॉर्म और एक्सेल यूटिलिटी में बदलाव के कारण पहले ही तैयारी के लिए अतिरिक्त समय दिया गया था, अब डिसिप्लिन जरूरी है। यही वजह है कि 15 सितंबर की तारीख को बार-बार दोहराया जा रहा है।
उधर उद्योग संगठन—जैसे गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (GCCI)—ने औपचारिक रूप से मांग रखी है कि गैर-ऑडिट मामलों की डेडलाइन कम से कम 30 सितंबर तक और ऑडिट मामलों की 15 दिसंबर तक बढ़ाई जाए। कर सलाहकार कहते हैं कि कुछ इलाकों में मौसम की बाधाएं और यूटिलिटी/प्रिफिल अपडेट देर से आने जैसी मुश्किलें रही हैं, इसलिए सीमित या क्षेत्रवार राहत दी जा सकती है।
क्या केंद्र सरकार देशभर के लिए एक साथ डेडलाइन बढ़ाएगी? अभी संकेत इसके उलट हैं। हां, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के पास यह विकल्प हमेशा रहता है कि किसी राज्य/जिले में गंभीर व्यवधान—जैसे बाढ़ या व्यापक सिस्टम आउटेज—साबित होने पर स्थानीय स्तर पर समय बढ़ा दे। अभी तक ऐसा कोई व्यापक आदेश नहीं आया है, इसलिए सुरक्षित मानकर चलिए कि 15 सितंबर ही प्रैक्टिकल डेडलाइन है।
आंकड़ों पर आएं तो 5.95 करोड़ फाइलिंग के बावजूद ई-वेरिफिकेशन की रफ्तार कम दिख रही है। ई-वेरिफाई नहीं करने पर रिटर्न वैध नहीं माना जाता। यह अंतर भी उद्योग जगत की दलील को बल देता है कि कुछ और समय मिलना चाहिए। फिर भी, मंत्रालय का फोकस अनुपालन (कम्प्लायंस) की तय टाइमलाइन पर है ताकि रिफंड प्रोसेस तेजी से आगे बढ़े और अगली तिमाही के राजस्व अनुमान साफ रहें।
किस पर असर, क्या करना चाहिए
यह डेडलाइन खासतौर पर गैर-ऑडिट करदाताओं पर लागू है—ज्यादातर सैलरीड, पेंशनर्स, HUFs, और वे प्रोफेशनल/छोटे कारोबारी जो सेक्शन 44AD, 44ADA, 44AE की प्रिज़म्पटिव स्कीम में हैं और जिनका टर्नओवर ऑडिट सीमा से नीचे है। ऑडिट वाले व्यवसायों के लिए अभी 31 अक्टूबर 2025 की समयसीमा है, और ट्रांसफर प्राइसिंग रिपोर्ट वालों के लिए 30 नवंबर 2025।
अगर आप 15 सितंबर से चूकते हैं तो क्या होगा? लेट फीस सेक्शन 234F के तहत लगेगी—कुल आय 5 लाख से कम है तो 1,000 रुपये, अन्यथा 5,000 रुपये। अगर टैक्स बाकी है तो सेक्शन 234A के तहत प्रति माह 1% ब्याज अलग से गिनेगा। शॉर्ट एडवांस टैक्स पर 234B/234C का ब्याज भी लग सकता है। बिलेयटेड रिटर्न 31 दिसंबर 2025 तक फाइल हो सकता है, लेकिन फिर ये चार बातें सिर पर रहेंगी—लेट फीस, ब्याज, रिफंड में देरी और नुकसान सेट-ऑफ पर पाबंदियां।
नुकसान सेट-ऑफ की बात कई लोग आखिरी हफ्ते भूल जाते हैं। समय पर रिटर्न न भरने पर बिज़नेस लॉस और कैपिटल लॉस को अगले सालों में आगे ले जाना मुश्किल हो सकता है; हाउस प्रॉपर्टी लॉस अलग अपवाद है। इसीलिए, भले ही आपका टैक्स जीरो हो, समय पर फाइलिंग का फायदा दीर्घकाल में बड़ा होता है।
एक और अहम बात—ई-वेरिफिकेशन 30 दिनों के अंदर करें। रिटर्न फाइल करके छोड़ देने से काम पूरा नहीं होता। ई-वेरिफाई न हुआ तो रिटर्न ‘इनवैलिड’ माना जा सकता है और फिर सब दोबारा करना पड़ेगा। ई-वेरिफिकेशन के आसान विकल्प: आधार OTP, नेट बैंकिंग, डिमैट/बैंक अकाउंट के जरिए EVC। अगर आप DSC (डिजिटल सिग्नेचर) से वेरिफाई करते हैं तो यह अपडेटेड होना चाहिए।
कई लोग पूछते हैं—अगर 15 सितंबर तक पूरा नहीं हो पा रहा, तो क्या ‘रफ’ रिटर्न फाइल कर दें और बाद में सुधार करें? टेक्निकली आप 31 दिसंबर 2025 तक रिवाइज्ड रिटर्न फाइल कर सकते हैं, बशर्ते पहले का रिटर्न वैध रूप से फाइल हुआ हो। पर ध्यान रखें: गलतियां सुधारने का समय सीमित है, और बड़े मिसमैच पर नोटिस का रिस्क रहता है। इसलिए जल्दबाजी में गलतियों से बचने के लिए एक चेकलिस्ट काम आएगी।
लास्ट-मिनट चेकलिस्ट:
- फॉर्म 16/16A और सैलरी ब्रेकअप की पूरी कॉपी रखें।
- फॉर्म 26AS, AIS और TIS में दिख रही इनकम/टैक्स क्रेडिट को मिलान करें।
- बैंक ब्याज सर्टिफिकेट, डिविडेंड स्टेटमेंट, और पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन्स) स्टेटमेंट जुटा लें।
- होम लोन इंटरेस्ट सर्टिफिकेट, HRA के लिए किराया रसीदें, LIC/PPF/EPF/ELSS जैसे निवेश के प्रमाण पास रखें।
- दान (80G), मेडिकल इंश्योरेंस (80D), शिक्षा ऋण ब्याज (80E) जैसी छूटों के प्रमाण जोड़ें।
- सही ITR फॉर्म चुनें—गलत फॉर्म पर रिटर्न ‘डिफेक्टिव’ हो सकता है।
- बैंक अकाउंट प्री-वैलिडेट और नाम/IFSC सही होना चाहिए ताकि रिफंड अटके नहीं।
पोर्टल टिप्स जो समय बचाते हैं: ऑफ-पीक घंटे—सुबह जल्दी या देर रात—में फाइल करें। ब्राउज़र कैश/कुकीज क्लियर करके लॉगिन करें। PDF जनरेशन या प्रीफिल में देरी हो तो पेज रिफ्रेश करने के बजाय कुछ मिनट इंतजार करें। अटकते फॉर्म के लिए ऑफलाइन यूटिलिटी आजमाएं और XML/JSON अपलोड करें।
कौन लोग सबसे ज्यादा दबाव में हैं? सैलरीड टैक्सपेयर्स जिनके कैपिटल गेन्स स्टेटमेंट देर से आए, छोटे उद्यमी जिनके बुक्स क्लोजिंग में देरी हुई, और वे करदाता जिन्होंने पुराने निवेश/कटौतियों के प्रमाण अब तक इकट्ठे नहीं किए। इनके लिए प्रैक्टिकल रास्ता है—पहले अनडिस्प्यूटेड आंकड़ों पर रिटर्न फाइल करें, फिर वैध डाक्यूमेंट आते ही रिवाइज्ड रिटर्न पर विचार करें।
उद्योग जगत की मांग क्यों बढ़ रही है? वजहें तीन—(1) यूटिलिटी/फॉर्म अपडेट के बाद व्यावहारिक तैयारी में समय लगा, (2) कुछ इलाकों में मौसम/नेटवर्क व्यवधान रहे, (3) ई-वेरिफिकेशन का गैप बताता है कि करदाता अंतिम हफ्ते में बड़ी संख्या में सक्रिय हुए हैं। GCCI जैसे निकाय कहते हैं कि दो हफ्ते का अतिरिक्त समय भी अनुपालन का दायरा काफी बढ़ा देगा।
सरकार के नजरिए से तस्वीर अलग है। तय टाइमलाइन से राजस्व का पूर्वानुमान स्पष्ट रहता है, रिफंड प्रोसेस जल्दी होता है और केस-चयन (स्क्रूटनी) का कैलेंडर नहीं बिगड़ता। पिछले कुछ वर्षों में एक पैटर्न दिखा है—देशव्यापी विस्तार बहुत सीमित मौकों पर ही, जबकि क्षेत्रवार राहत ठोस कारणों पर दी जाती है। यही वजह है कि इस बार पैन-इंडिया एक्सटेंशन की उम्मीदें कम लग रही हैं।
ऑडिट केसों का क्या? अभी की स्थिति में टैक्स ऑडिट की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर है, और ट्रांसफर प्राइसिंग रिपोर्ट की 30 नवंबर। उद्योग निकाय ऑडिट डेडलाइन 15 दिसंबर तक ले जाने की बात कर रहे हैं। सरकार यहां भी शेड्यूल टाइट रखना चाहती है, क्योंकि ऑडिट/TP के बाद असेसमेंट और नोटिस कैलेंडर प्रभावित होता है।
जो करदाता सोच रहे हैं—अगर बाद में बड़ी गलती दिखी तो? 31 दिसंबर 2025 तक रिवाइज्ड रिटर्न का विकल्प है। उसके बाद भी, आखिरी उपाय के रूप में ‘अपडेटेड रिटर्न’ (ITR-U) की राह रहती है, जिसमें अतिरिक्त कर पर 25%/50% तक अतिरिक्त रकम चुकानी पड़ सकती है। यह महंगा पड़ता है, इसलिए बेहतर यही है कि अभी सही-सही फाइलिंग और ई-वेरिफिकेशन कर लें।
टैक्स क्रेडिट मिसमैच से कैसे बचें? 26AS/AIS में जो TDS/TCS दिख रहा है, वही क्लेम करें। अगर कोई एंट्री गलत है, तो पहले कटौतीकर्ता से करेक्शन की पहल करवाएं। हाई-वैल्यू ट्रांजैक्शन (क्रेडिट कार्ड खर्च, म्यूचुअल फंड/शेयर रिडेम्पशन, विदेशी ट्रैवल) की रिपोर्टिंग AIS में आती है—उसे अनदेखा करना ठीक नहीं। गलत रिपोर्टिंग केस-चयन की वजह बन सकती है।
जो लोग नई कर व्यवस्था और पुरानी व्यवस्था के बीच उलझे हैं, याद रखें—डिफॉल्ट नई व्यवस्था है, पर आप अपनी स्थिति के हिसाब से विकल्प चुन सकते हैं। सैलरीड टैक्सपेयर अपनी फॉर्म 16 और टैक्स कैलकुलेटर से दोनों का तुलना करें। कई मामलों में HRA, 80C, 80D जैसी कटौतियां पुरानी व्यवस्था को फायदेमंद बनाती हैं, पर सब पर एक जैसा फार्मूला नहीं चलता।
अब सबसे जरूरी बात—समय। अगर राष्ट्रीय स्तर पर कोई नई अधिसूचना आती है, तो वह CBDT की ओर से औपचारिक आदेश में आएगी। तब तक 15 सितंबर को ही अंतिम मानें। आखिरी मिनट की भीड़, पोर्टल की स्लो स्पीड, OTP में देरी—ये सब आम हैं। इसलिए आज ही फाइलिंग शुरू करें, दस्तावेज स्कैन कर लें, बैंक अकाउंट प्री-वैलिडेट कर लें और ई-वेरिफिकेशन का तरीका तय कर लें।
जो लोग नॉन-ऑडिट कैटेगरी में हैं, उनके लिए इस समय सबसे समझदारी भरा कदम है—गैर-विवादित आय-खर्च और टैक्स क्रेडिट पर आधारित रिटर्न तुरंत फाइल करना। जहां विवाद या डाटा की कमी हो, वहां नोटिंग बना लें और दस्तावेज आते ही रिवाइज्ड रिटर्न की योजना रखें। इससे जुर्माना और ब्याज सीमित रहेगा, रिफंड जल्दी प्रोसेस होगा और नोटिस का रिस्क भी घटेगा।
निचोड़ वही—उद्योग जगत की मांग के बावजूद केंद्र का संदेश है कि और विस्तार मुश्किल है। क्षेत्रवार राहत की खिड़की खुली रह सकती है, पर उस पर भी पक्का कुछ कहना जल्दबाजी होगी। जो निश्चित है, वह सिर्फ यह कि ITR Filing 2025 के लिए अब समय कम है और हर दिन मायने रखता है।