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ऐसे बनी लिव-इन की ये धारणा
आपकों बता दें कि हाल ही में एक 80 साल के बुजुर्ग पाबुरा ने 70 साल से लिव इन में रह साथ रह रही पार्टनर रुपाली से शादी की है l इस शादी में पाबुरा के पड़पोते तक बारात में शामिल हुए थे l सालों पहले गरासिया जनजाति के चार भाई कहीं और जाकर बस गए। इनमें से तीन ने शादी की और एक समाज की कुंवारी लड़की के साथ लिव-इन में रहने लगा। शादीशुदा तीनों भाइयों के कोई औलाद नहीं हुई बल्कि लिव-इन में रहने वाले भाई के बच्चे हुए और उसी से वंश आगे बढ़ा। बस इसी धारणा ने समाज के लोगों के जेहन में इस परंपरा को जन्म दिया।कहते हैं इन जनजाति में ये ट्रेडिशन 1 हजार साल पुराना है।
राजस्थान और गुजरात में इस समाज का दो दिन का ‘विवाह मेला’ लगता है, जिसमें टीनएजर एक-दूसरे से मिलते हैं और भाग जाते हैं। भागकर वापस आने पर लड़के-लड़कियां बिना शादी के पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगते हैं। इस दौरान सामाजिक सहमति से लड़की वाले को कुछ पैसे लड़के वाले दे देते हैं। वहीं बच्चे पैदा होने के बाद वे अपनी सहूलियत से कभी भी शादी कर सकते हैं।
इतना ही नहीं यदि औरत चाहे तो किसी और मेले में दूसरा लिव इन पार्टनर भी चुन सकती हैं। इसके लिए नए लिव इन पार्टनर को पहले पार्टनर की तुलना में ज्यादा पैसा देना होता है। कई लोगों की शादी तो बूढ़े होने पर उनके बच्चे करवाते हैं। इसके अलावा कई बार बच्चे अपने मां बाप के साथ मिलकर शादी करते हैं। इतना ही नहीं दूल्हे के घरवाले शादी का खर्चा उठाते हैं और शादी भी दूल्हे के ही घर में होती है।
आगे पढ़े…सदियों से चला आ रहा है यहाँ विवाहिता को कोठे पे भेजने का रिवाज
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