अन्य राष्ट्रों समेत हिन्दू बहुल भारत की धरती पर हिन्दुओ के “इतिहास” के साथ हमेशा अन्याय किया गया हैं। न जाने, हिन्दुओं का इतिहास मिटाने और छिपाने के कितने ही प्रयास किये गए। मगर सच कभी छिपता नहीं!
महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, पुष्यमित्र शुंग, राजा दाहिर के नाम तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं, मगर वीर बप्पा रावल के नाम को शायद ही कोई जनता हो!
बप्पा रावल एक ऐसे हिन्दू सम्राट रहे हैं, जिनके नाम भर मात्र से दुश्मनों के हाथ पाँव ठन्डे पड़ जाते थे। जब भारत पर 734 ईसवी में अरबों ने आक्रमण किया, तब राजस्थान में एक ऐसा योद्धा पैदा हुए जिन्होंने उन्हें मार मार के वापस उनके देश तक खदेड़ा था। उन्होंने अरबी, तुर्क और फारसी मुस्लिमों के दिल में इतनी दहशत भर दी थी कि मुसलमानों ने अगले 400 साल तक हिंदुस्तान की ओर आँख उठा के नहीं देखा। ऐसे योद्धा थे मेवाड़ वंश के संथापक, कालभोज के राजकुमार ‘बाप्पा रावल’! साथ ही शिव के एकलिंग रूप के भक्त और चितौड़ के किले के निर्माता!
उनके पिता महेंद्र रावल द्वितीय की आक्रमणकारियों के हत्या की थी और उनकी माता जी अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए सती हो गयी थी। बप्पा रावल का पालन पोषण उनके कुलपुरोहित ने बड़े प्यार से किया और एकलिंग जी की भक्ति के साथ साथ समस्त युद्ध लालाओ में निपुण बनाया। बप्पा रावल ने अपना खोया हुआ राज्य मात्र 21 साल की उम्र में वापस ले लिया था और एक कुशल शासक के रूप में अपने को स्थापित किया।
बाद में जब अरब, तुर्कों और फारसियो ने आक्रमण किया तो बप्पा रावल ने न केवल उन्हें युद्ध में हराया, बल्कि अरबो को वापस उनके देश तक खदेड़ा। ऐसा था बप्पा रावल का खौफ कि मुसलमानों ने अगले 400 साल भारत की ओर आँख उठा कर देखने तक की हिम्मत नहीं की।
मगर भारत के वामपंथी एवं भाड़े के इतिहासकारों ने उनके नाम को मिटाने और छिपाने की कोशिश की! रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ था। इससे पहले तक रावलपिंडी को गजनी प्रदेश कहा जाता था। तब कराची का नाम भी ब्रह्माणावाद था।
गजनी प्रदेश में बप्पा ने सैन्य ठिकाना स्थापित किया था। वहां से उनके सैनिक अरब सेना की गतिविधियों पर नजर रखते थे। उनकी वीरता से प्रभावित गजनी के सुल्तान ने अपनी पुत्री का विवाह भी उनसे किया था। मेवाड़ में बप्पा व दूसरे प्रदेशों में इस वीर शासक को बापा भी पुकारा जाता था। हारीत ऋषि का आशीर्वाद मिला
ईडर के गुहिल वंशी राजा नागादित्य की हत्या के बाद उनकी पत्नी तीन साल के पुत्र बप्पा को लेकर बडऩगरा (नागर) जाति के कमलावती के वंशजों के पास ले गईं। उनके वंशज गुहिल राजवंश के कुल पुरोहित थे। भीलों के आतंक से फलस्वरूप कमला के वंशधर ब्राह्मण, बप्पा को लेकर भांडेर नामक स्थान पर आ गए। यहां बप्पा गायें चराने लगे। इसके बाद नागदा आए और ब्राह्मणों की गायें चराने लगे।
बप्पा जिन गायों को चराते थे, उनमें से एक बहुत अधिक दूध देती थी। शाम को गाय जंगल से वापस लौटती थी तो उसके थनों में दूध नहीं रहता था। बप्पा दूध से जुड़े हुए रहस्य को जानने के लिए जंगल में उसके पीछे चल दिए। गाय निर्जन कंदरा में पहुंची और उसने हारीत ऋषि के यहां शिवलिंग अभिषेक के लिए दुग्धधार करने लगी। इसके बाद बप्पा हारीत ऋषि की सेवा में जुट गए।
इन ऋषि के आशीर्वाद से ही बप्पा मेवाड़ के राजा बने। हारीत ऋषि द्वारा बताए गए स्थान से बप्पा को 15 करोड़ मूल्य की स्वर्ण मुद्राएं मिलीं। बप्पा ने इस धन से सेना निर्माण कर मोरियों से चित्तौड़ का राज्य लिया। यहीं से मेवाड़ राजवंश की नींव पड़ी। अत: हम समझ सकते हैं कि इतने महान शासक के साथ इतिहास ने कितना अन्याय किया है!!!