भारत का बाहुबली था यह महान योद्धा……अकबर भी रोया जिसकी म्रत्यु पर

महाराणा प्रताप की वीर गाथा

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मेवाडके महान राजा, महाराणा प्रताप सिंहका नाम कौन नहीं जानता ? भारतके इतिहासमें यह नाम वीरता, पराक्रम, त्याग तथा देशभक्ति जैसी विशेषताओं हेतु निरंतर प्रेरणादाई रहा है । मेवाडके सिसोदिया परिवारमें जन्मे अनेक पराक्रमी योद्धा, जैसे बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा संगको ‘राणा’ यह उपाधि दी गई; अपितु ‘ महाराणा ’ उपाधिसे  केवल प्रताप सिंहको सम्मानित किया गया|

आपको जानकर हैरानी होगी की महाराणा प्रताप का भला दो मण यानि 80 किलो का था, उनका कवच 72 किलो का था और तलवार का वजन लगभग २८ किलो| अब सोचिये जब कोई व्यक्ति जो २०८ किलो वजन लेकर (भला, कवच, ढाल और २ तलवार) रणभूमि में लेकर मुगलों से पूरा दिन लड़ता हो तो उसमे कितनी ताकत होगी, ऐसा कहा जाता है की महाराणा प्रताप अपनी अंगुलियो के बिच सिक्का रख उसे मसल कर लम्बा कर देते थे,

महाराणा प्रतापको एक ही चिंता थी, अपनी मातभूमिको मुगलोंके चंगुलसे मुक्त कराणा था । एक दिन उ्न्होंने अपने विश्वासके सारे सरदारोंकी बैठक बुलाई तथा अपने गंभीर एवं वीरतासे भरे शब्दोंमें उनसे आवाहन किया । उन्होंने कहा,‘ मेरे बहादूर बंधुआ, अपनी मातृभूमि, यह पवित्र मेवाड अभी भी मुगलोंके चंगुलमें है । आज मैं आप सबके सामने प्रतिज्ञा करता हूं कि, जबतक चितौड मुक्त नहीं हो जाता, मैं सोने अथवा चांदीकी थालीमें खाना नहीं खाऊंगा, मुलायम गद्देपर नहीं सोऊंगा तथा राजप्रासादमें भी नहीं रहुंगा; इसकी अपेक्षा मैं पत्तलपर खाना खाउंगा, जमीनपर सोउंगा तथा झोपडेमें रहुंगा । जबतक चितौड मुक्त नहीं हो जाता, तबतक मैं दाढी भी नहीं बनाउंगा । मेरे पराक्रमी वीरों, मेरा विश्वास है कि आप अपने तन-मन-धनका त्याग कर यह प्रतिज्ञा पूरी होनेतक मेरा साथ दोगे । अपने राजाकी प्रतिज्ञा सुनकर सभी सरदार प्रेरित हो गए, तथा उन्होंने अपने राजाकी तन-मन-धनसे सहायता करेंगे तथा शरीरमें  रक्तकी आखरी बूंदतक उसका साथ देंगे; किसी भी परिस्थितिमें मुगलोंसे चितौड मुक्त होनेतक अपने ध्येयसे नहीं हटेंगे, ऐसी प्रतिज्ञा की  । उन्होंने महाराणासे कहा, विश्वास करो, हम सब आपके साथ हैं, आपके एक संकेतपर अपने प्राण न्यौछावर कर देंगे ।

अकबर को भी मुह की खानी पड़ी जब सामना हुआ इस महान शूरवीर से 

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