नई दिल्ली उस दिन भी हर चीज रोजाना की ही तरह सामान्य सी ही थी। हमेशा की ही तरह वह भी अपने कॉलेज के लिए घर से हंसी खुशी निकली थी। फिर मन करा तो अपने एक दोस्त के साथ फिल्म देखने का प्रोग्राम बना लिया। बस वहीं से कुछ भी सामान्य नहीं रहा। फिर जो कुछ उस लड़की के साथ हुआ उसको देश ही नहीं पूरी दुनिया ने देखा और सुना। जी हां, हम बात कर रहे हैं 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात को हुए उस जघन्य कांड को सहने वाली निर्भया की, जिसके दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है।
हम आज इसलिए यह कहानी दोहरा रहे हैं क्योंकि यदि आज वह जिंदा होती तो अपना 28 वां जन्मदिन मना रही होती। जिस पीड़ा से वह गुजरी दुआ करनी चाहिए कि अन्य किसी को उससे न गुजरना पड़े। 16 दिसंबर से 26 दिसंबर तक वह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रही थी। इस दौरान उसने अपनी मां को अपना दर्द कागज पर लिख कर बयां किया था, क्योकि वह कुछ भी कह पाने में असमर्थ थी। इन्हे पढ़कर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
निर्भया केस एक ऐसा केस है जिसे सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हो गए हैं, कोई इंसान इतना कैसे गिर सकता है, न जाने कितना दर्द सहा उस मासूम ने वो कहती है की मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। आपको याद है में फिजियोथेरेपिस्ट बनाना चाहती थी जिससे की दुसरो का दर्द दूर कर सके लेकिन आज में खुद इतने दर्द मे हू की कोई दवा काम नहीं आ रही है, मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं।जब भी मैं आंखें बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दरिंदों के बीच फंसी हूं। मैं नाहना चाहती हूं। आपने मुझे हमेशा से ही मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है। मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं। । इनके लिए माफी की भूल कर भी मत सोचना।
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मां, मैं अब बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो। मैं अब सोना चाहती हूं। मां, मेरा सिर अपने पैरों मे रख लो। मेरा शरीर साफ कर दो। डॉक्टरों से कहकर मेरे इस दर्द को कम करने की दवाई दिलवा दो, बहुत दर्द हो रहा है। मेरे पेट मे दर्द लगातार बढ़ता जा रहा है। डाक्टरों से कहना की अब मेरे शरीर का कोई अंग न काटें, इससे मुझे बहुत दर्द होता है। मां, मुझे माफ कर देना, अब मैं ज़िंदगी से और नहीं लड़ सकती हूं।