छत्तीसगढ़ स्थित सुकमा जिले की दोरनापाल से जगरगुंडा तक 56 किलोमीटर की सड़क पिछले चार दशक से राज्य सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। इसका निर्माण चल रहा है। कभी वनोपज का केंद्र और उप तहसील मुख्यालय रहे जगरगुंडा में अब कंटीले तारों से घिरा एक सलवा जुडूम कैंप है। तारों के पार मौत का सामान लेकर नक्सली खड़े रहते हैं। जगरगुंडा को देश से जोड़ने के तीन रास्ते हैं, जिनमें से दो पर बम बिछे हैं और तीसरे पर जब चाहे तब नक्सली एंबुश लगाकर जवानों को शहीद कर देते हैं, आखिर क्या चाहते हैं ये नक्सली, क्या मकसद है इनका?
यानी नक्सलवाद ने इसे टापू बना दिया है। इसी रास्ते पर 2010 में अब तक की सबसे बड़ी नक्सल वारदात हुई थी, जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। जगरगुंडा सड़क निर्माण को सुरक्षा दे रहे सीआरपीएफ के 25 जवानों की सोमवार को शहादत के बाद एक बार फिर यह सड़क सुर्खियों में है। इससे पहले बासागुडा की तरफ सड़क निर्माण सुरक्षा में लगे 24 जवान अलग-अलग हमलों में शहीद हुए हैं। अगर इसी तरह ये जवान शहीद होते रहे तोह ये कहना गलत नहीं होगा की नक्सलवाद अपने इरादों में जीत रहे हैं|
“क्यों है चार सौ किमी सड़क नक्सली कब्जे में”