इस फ़ैशन बाजार की भी बड़ी संभावनाएं हैं जिसका अभी तक ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया है. फ़ैशन कंसल्टेंट शेलिना जैनमोहम्मद कहती हैं, “दुनिया भर में मुस्लिम उपभोक्ताओं के ख़र्च करने की क्षमता साल दर साल बढ़ रही है.”
उन्होंने बताया, “हम जानते हैं कि मुसलमानों का फ़ैशन बाजार सालाना 200 अरब डॉलर का है और ये जल्द ही एक लाख करोड़ डॉलर के क़रीब पहुंच सकता है.”लेकिन सवाल उठता है कि वास्तव में ‘मुसलमानों का फ़ैशन’ आखिर चीज क्या है?
शेलिना जैनमोहम्मद के मुताबिक, “मुस्लिम महिलाएं मानेंगी कि उनकी पसंद-नापसंद पर उनके मजहब का असर है. वे शालीन तरीके से कपड़े पहनना पसंद करती हैं.” मुसलमान औरतों के लिए शालीन कपड़े का मतलब अमूनन लंबी स्कर्ट, ढंकी बांहों वाले कपड़े से निकाला जाता है. कुछ महिलाएं तो अपने बाल भी ढंके रखना पसंद करती हैं.
इस वजह से महिलाओं के लिए ख़रीदारी करना अक्सर ही मुश्किल हो जाता है.एक सवाल इसी से जुड़ा है कि इस बाज़ार में दखल बनाकर फ़ैशन ब्रैंड्स क्या हासिल कर सकती हैं. शेलिना कहती हैं, “मुस्लिम महिलाएं पिछले पांच सालों से फ़ैशन ब्रैंड्स के सामने ये मांग उठाती रही हैं कि उनकी पसंद-नापसंद का भी ख़्याल रखा जाए.”उनका पैसा अभी ख़र्च किया जाना बाक़ी है.
शेलिना का ख्याल है कि मुस्लिम महिलाएं ब्रैंड्स को लेकर ज्यादा फ़िक्रमंद रहती हैं, उनकी पसंद में एक तरह की स्टैबिलिटी है. इसलिए जो भी ब्रैंड्स उनकी पसंद का ख्याल रखेंगे, उन्हें वफादार कन्ज्यूमर बेस मिलेगा.लेकिन मुस्लिम महिलाएं क्या सोचती हैं? एक मुस्लिम महिला ने कहा, “ये अच्छी बात है. पहली बार मुसलमान औरतों की पसंद का ख़्याल रखा जा रहा है. हम इसमें ब्रैंड वैल्यू देखते हैं और मेरे ख़्याल से लोगों को ब्रैंड से जुड़ने दीजिए. इससे ब्रैंड की इज्जत बढ़ती है.”
इसी सवाल पर एक और मुस्लिम महिला कहती हैं, “आपको लगता है कि आप समाज का हिस्सा हैं. अगर ऐसा होता है तो ब्रैंड्स एक बड़े बाज़ार में उतरने जा रहे हैं. ये एक ऐसा बाज़ार है जिसका इस्तेमाल नहीं किया गया है.”