भारत के मुसलमानों ने खुद को कभी देश का हिस्सा समझा नहीं देखिये कैसे !

सईद भाई आप देर में बोल रहे हैं. काश कि 1986 में आपलोग खड़े

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जश्न को वर्तमान से जोड़ने के लिए इसे ‘चौथे-इमाम’ के पर्यावरण संबंधी विचारों से जोड़ा गया था. कार्यक्रम की शुरुआत में इसी से जुडी बातें होती रहीं. लेकिन, जब बारी सईद नक़वी की आई तो उन्होंने ‘मैं अ-धार्मिक नहीं हूं, लेकिन धार्मिक भी नहीं हूं’ के साथ अपना संबोधन शुरू किया और देखते ही देखते ‘बदलता हुआ पर्यावरण और ज़िन्दगी’ को ‘बदलता हुआ सियासी माहौल और मुसलमान’ में तब्दील कर दिया.

इन चुनावों में मीडिया और मुसलमान ने मिलकर पूरा माहौल साम्प्रदायिक बना दिया. बीजेपी को इसके लिए दोष नहीं दिया जा सकता. उसने तो बहुत बाद में चौथे चरण के आस-पास शमशान-कब्रिस्तान जैसे जुमले गढ़े लेकिन मीडिया ने शुरू से ही पूरा माहौल मुसलमान-केन्द्रित बना दिया जिसके नतीजे में ध्रुवीकरण हुआ और बीजेपी को इतना बड़ा मैन्डैट मिला. ‘अब साल 2022 में जिस नए भारत का उदय होनेवाला है, उसमें मुसलमान की हिस्सेदारी अगर सवालों के घेरे में होगी तो इसका जिम्मेदार खुद मुसलमान है और उसे इस हाल तक पहुंचाने की सारी जिम्मेदारी कॉंग्रेस पार्टी पर है.’

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