क्या प्रेम ऐसे ही तत्क्षण, लगभग ढीठ होकर पनप सकता है? कैथेड्रल की पुरानी दीवारों की छांव में टहलते हुए जब राजीव (गांधी) ने सोनिया का हाथ अपने हाथों में लिया, वह उन्हें खींच भी न सकीं। उन नर्म और उष्ण हाथों में अरपरिमित, अगाध सुरक्षा और आनंद का बोध था।
सोनिया के लिए बहुत ही कठिन घड़ी थी, लेकिन वह सही चीजें करने के लिए दृढ़ थीं और उन्हें सही तरीके से भी करना था। जब वह भारतीय राजदूत के आवास की सीढ़ियां चढ़ रही थीं, उनके पैर कांप रहे थे। इंदिरा (गांधी) और सोनिया की सबसे अच्छी मित्र पुपुल जयकर वहीं ठहरी थे। जयकर ने ही नेहरू का श्रद्धाजंलि कार्यक्रम आयोजित करने में सोनिया की मदद की थी।
उन्होंने (राजीव गांधी ने) स्टेफानो मायनो से कहा, ‘मैं बहुत ही अहम बात करने आया हूं। मैं आपसे ये कहने आया हूं कि मैं आपकी बेटी से विवाह करना चाहता हूं।’