आरक्षण मुद्दे पर लिया PM मोदी का ये फैसला देश में भूचाल लादेगा

19638
Share on Facebook
Tweet on Twitter

भारत की राजनीति में रोज नए नए प्रयोग हो रहे है देश के अलग-अलग हिस्सों में पिछड़ा आरक्षण की मांग करने वालों को केंद्र सरकार ने एक जबरदस्त झटका दिया है। दरअसल, देश के अलग-अलग हिस्सों में उठने वाली आरक्षण की मांग और उनके पीछे चलने वाली वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए मोदी सरकार ने इस आरक्षण के मुद्दे पर फैसला करने का अधिकार को राज्य सरकारों के हाथों से लेकर संसद को दे दिया है। यह फैसला गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में की हुई कैबिनेट कमिटि में किया गया।

क्या है नया फैसला?
नए फैसले में मौजूदा पिछड़े आयोग की जगह नए आयोग के गठन की बात कही गई है, वहीं दूसरी ओर इस आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का भी प्रस्ताव है। कैबिनेट के हालिया फैसले के बाद केंद्र सरकार राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की जगह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग (NSEBC) का गठन किया जाएगा। कहा जा रहा है कि इस आयोग का गठन एससी-एसटी कमिशन की तरह किया जाएगा और इसे संवैधानिक दर्जा दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि हाल ही में ओबीसी वेलफेअर से जुड़ी कमिटि ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी, जहां उसने आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग रखी थी, जिसे केंद्र सरकार ने मान लिया।

 

संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद इस वर्ग में किसी नई जाति को शामिल किए जाने और हटाने के लिए राज्य सरकारों की इच्छा या मंशा काम नहीं करेगी, बल्कि संसद की मंजूरी जरूरी होगी। कैबिनेट से मंजूरी के बाद इसे लेकर संविधान में संशोधन के तहत 338बी की धारा जोड़ने का प्रस्ताव संसद में लाया जाएगा। इतना ही नहीं, इस संशोधन में कहा जाएगा कि किसी भी नई जाति को जोड़ने या हटाने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होगी। संशोधन में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ों की परिभाषा दी जाएगी। इस आयोग में एक चेयरपर्सन, एक वाइस चेयरपर्सन और तीन मेंबर नियुक्त किए जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार प्रस्तावित आयोग के गठन के लिए जल्द ही एक कमिटि बनाएगी। जो छह महीने के भीतर इस आयोग के स्वरूप और काम को लेकर पूरा खाका सरकार को सौंपेगी। इस रिपोर्ट के बाद ही सरकार आयोग को बनाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।

क्या हैं इसके राजनैतिक मायने? मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे राजनैतिक मायने देखे जा रहे हैं। फौरी तौर पर तो इसे हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर उठी मांग से जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इस आयोग के गठन का प्रस्ताव लाकर केंद्र सरकार ने जाट आरक्षण के मुद्दे में किसी फैसले तक पहुंचने के लिए मोहलत जुटाने की कोशिश की है। दूसरा, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से पिछड़ा वर्ग में नई जाति जोड़ने या हटाने का अधिकार लेकर अधिकार और सत्ता का केंद्रीकरण किया है।

दरअसल, राज्य सरकारें और क्षेत्रीय दल अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को हवा देती रहती है। आयोग बनने से उनके इस वोट बैंक को लुभाने की रणनीति में खासा झटका लगेगा। उल्लेखनीय है कि कई राज्यों में तमाम क्षेत्रीय दलों की राजनीति पिछड़ों के इर्द-गिर्द घूमती है। यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, कनार्टक, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर ओबीसी हैं। इस फैसले के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है कि खुद बीजेपी की अभी तक ओबीसी वर्ग में सीधे पैठ नहीं रही हैं।

ऐसे में सत्ता में आने के लिए उसे हमेशा ओबीसी वर्ग तक पहुंचने के लिए अपने साथी दलों की जरूरत पड़ती रही है। बिहार में बीजेपी ने लालू के सामने कुर्मी वोट को पाने लिए नीतीश का हाथ थामा था, नीतीश के अलग होने पर उपेंद्र कुशवाहा का साथ लिया। इसी तरह से यूपी में यह कोशिश अपना दल के जरिए की गई। ऐसे में नए आयोग के जरिए केंद्र में मौजूद बीजेपी ओबीसी वर्ग के बीच पहुंच बनाने के लिए अपनी तरह से इबारत लिखना चाहेगी।

Loading...
Loading...