नीतीश के इस पत्र ने उठाया 25 साल पुराने इस बड़े राज से पर्दा

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जैसा आप जानते ही हा कि बिहार में राजनीतिक हलचल काफी तेज हो गई हैl लालू-नीतीश की महागठबंधन की सरकार के दिन लद चुके हैं और नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना चुके हैंl 26 जुलाई बुधवार शाम न केवल लालूप्रसाद यादव बल्कि लोगों को भी उस वक्त तेज हटका लगा जब नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपाl

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राज्यपाल को इस्तीफा सौपने के बाद नीतीश कुमार ने पत्रकारों से भी करीब 25 मिनट तक बातचीत की, जिस दौरान उन्होंने जो बातें कहीं वो इसकी तरफ इशारा कर रही थीं कि राज्य के उप मुख्यमंत्री और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उनके लिए काम करना मुश्किल हो गया थाl जिसके चलते उन्हें मजबूरन इस्तीफा देना पड़ाl पत्रकारों से बातचीत में नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि वो यह कदम अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर उठा रहे हैंl

अगर आपको याद हो तो आज से करीब चार साल पहले जब नीतीश बीजेपी से अलग हुए थे तब भी उन्होंने कुछ-कुछ ऐसा ही कहा था जो वो आज लालू यादव से अलग होते हुए कह रहे हैl उस वक्त भी उन्होंने यही कहा था कि हमने धोखा नहीं कियाl हम तो देश को जोड़ने की राजनीति करते हैंl धोखा तो उन्होंने किया हैl ऐसे में साथ काम करना मुश्किल हो गया थाl उस वक्त भी नीतीश ने अपने इस्तीफे का सारा ढीकरा बीजेपी पर ही फोड़ा थाl

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आइए आपको थोड़ा और पीछे इतिहास में ले चलते हैंl बात है साल 1990 कीl उस वक्त भी बीमार में सरकार बनाने में नीतीश कुमार की अहम भुमिका थीl उस दौर में भी सरकार बनने के बाद लालू-नीतीश के नाम से जिंदाबाद के नारे साथ-साथ लगते थे, लेकिन 1992 आते-आते स्थितियां काफी बदलने लगींl 1992 में दिसंबर में नीतीश कुमार ने उस वक्त के तत्कालिन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को खुद एक पत्र लिखा थाl इस पत्र के बाद ही मानो बिहार में एक नई राजनीतिक पार्टी, समता पार्टी के बनने का रास्ता साफ हो सका थाl

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जानकारी के लिए बता दें कि बिहार के वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत द्वारा लिखी गई किताब, “बिहार: चिट्ठियों की राजनीति” में इस पत्र से जुड़ी कुछ बेहद अहम बाते छपी हैl इस पत्र की पंक्तियों को पढना आज इसलिए भी जरुरी हो चला है क्योंकि बुधवार की शाम जिन बातों का उल्लेख करते हुए नीतीश कुमार ने लालू से अलग होने की घोषणा की वो इस चिट्ठी में आज से करीब पच्चीस साल पहले नीतीश कुमार लिख चुके थेl

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जी हाँ आपने सही सुना 25 साल पहले नीतीश कुमार ने अपनी चिट्ठी में जिन बातों का जिक्र किया था आज भी वो उन्हीं बातों को दोहराते हुए दिखेl ऐसे में अब ये सवाल उठना तो लाजमी ही है कि जब 25 साल पहले ही नीतीश, लालू से इतने दुखी थे, आहत थेl साथ ही उन्हें भ्रष्टाचार में डूबा बता रहे थे तो आज से करीब 4 साल पहले 2013 में वो बीजेपी से अलग होने के बाद लालू के साथ गए ही क्यों थे..?

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आइए आपको ठीक से समझाने के लिए हम इस पत्र के कुछ हिस्से आपके समक्ष रखते है जिसमे नीतीश लिखते है:-

“आपके राज में सामाजिक न्याय महज निजी लोकप्रियता बटोरने का एक नारा मात्र रह गया हैl इसके व्यवहारिक पक्ष में घोर अन्याय और पक्षपात की बू आने लगी हैl मैं एक बार पुन: स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि सामाजिक न्याय का सवाल मेरे लिए चुनाव में वोट बटोरने का एक मुद्दा मात्र नहीं है, बल्कि समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में एक ठोस एवं सुचिंतित कदम है, जिससे पीढ़ियां प्रभावित होंगी और सामाजिक परिवर्तन के लिए दूरगामी असर होगाl 1990 सितंबर में जब श्री लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा का बिहार चरण आरंभ हुआ था तो सबसे पहले बिहार में घुसते ही उन्हें कर्मनाश के पास गिरफ्तार कर लेने का निर्णय लिया गया था और इसके लिए श्री जगदानंद सिंह को वहां रवाना भी कर दिया गया थाl बाद में केंद्रीय नेताओं से विमर्श के उपरांत कार्यक्रम में परिवर्तन हुआ और अंतत: समस्तीपुर का चुनाव उन्हें पकड़ने के लिए किया गयाl आडवाणी जी की गिरफ्तारी कार्यक्रम की रुपरेखा निर्धारित करने और रात भर जगकर उसे कार्यान्वय हम दो-तीन लोगों तक सीमित थाl लेकिन बिहार और बिहार से बाहर जनसभाओं के माध्यम से या अखबारों के माध्यम से चटपटी भाषा में आप अकेले इसका श्रेय लेते रहेl पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के बारे में सोचने की बात तो दूर उनके सम्मान और स्वाभिमान पर भी आपके स्तर से प्रभाव हो रहा हैl दल के वरिष्ठ साथियों तक को आपके अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ रहा हैl स्वतंत्र अभिव्यक्ति, साफगोई और वस्तुस्थिति का सटीक चित्रण आपको स्वीकार्य नहीं हैl ठकुरसुहाती और चापलूसी आपके स्वभाव का अंग बन गई हैl”

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वाकई 25 साल पहले के नीतीश कुमार के पत्र की इन बातो को पढ़कर यही लगता है कि जो बात नीतीश आज महागठबंधन तोड़ते हुए कह रहे है वो ही सभी बाते तो वो आज से करीब 25 साल पहले भी कह चुके हैl

तो ऐसे में सवाल उठाना तो बनता ही है कि सब कुछ जानते हुए भी आखिरकार वो क्या मज़बूरी रही होगी नीतीश कुमार की जो उन्होंने 4 साल पहले बीजेपी का दामन झटक इतनी शिकायते होने के बाद भी लालू का हाथ पकड़ा थाl

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