यही है वो बालक जिसने यमराज को प्रसन्न कर उन्ही से जाना आत्मज्ञान का एक ऐसा रहस्य जिसे आज तक कई देवता भी नहीं जान पाए…

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आज इस कलयुग में हर इंसान अपने में ही खोया रहता है, उसे किसी से कोई मतलब नहीं कि कौन क्या कर रहा हैl आज के समय में इंसान इतना व्यस्त हो चुका है कि उसे अब अपने धर्म के बारे में जानने तक का समय नहीं हैl अगर हम अपने ऋषि-मुनि की वाणी के बारे में बात करे तो हमे पता चलेगा कि उन्होंने कई ग्रंथो का जिक्र करते हुए कहा है कि इंसान को कभी अपने धर्म को नहीं भूलना चाहिएl हमारे ऋषिओं का कहना बिल्कुल सही था, आज हम अपने धर्म के ज्ञान को जिस तरह भुलाते जा रहे हैं उसी तरह से हमारे अन्दर से इंसानियत भी ख़त्म होती जा रही हैl

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वैसे अगर हम इंसानियत की बात करे तो आज बहुत कम ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके अन्दर इंसानियत जिन्दा बची हैl नहीं तो आज के समय ऐसा कोई नहीं है जिसे किसी के मरने और जीने से कोई फर्क पड़ता होl हमारे जीवन का एक कड़वा सच है कि जब तक कोई हमारा किसी मुसीबत में ना हो तबतक हमे कुछ फर्क नहीं पड़ताl कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जिसमे कोई इंसान बिच सड़क पर अपना दम तोड़ देता है, लेकिन कोई भी इंसान उस व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं आताl और हम सिर्फ दूसरों को दोष देते रहते है वजाय इसके कि हम एक बार अपने अंदर भी देख लें कि हम क्या करते हैंl

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आज हम एक ऐसे बालक कि बात करने जा रहे हैं जिसके आगे यमराज को भी हार का सामना करना पड़ा थाl कठोपनिषद या कथा उपनिषद में एक कथा है बालक नचिकेता की जिसे पढ़कर आप सब दंग रह जायेंगl नचिकेता वजस्त्रवस या उद्दालक मुनि का पुत्र थाl ऋषि ने एक बार विश्वजीत नाम का यज्ञ कियाl उस में उन्हें ब्राह्मणों को सब कुछ दान करना थाl लेकिन उनके पुत्र बालक नचिकेता ने देखा की पिता सिर्फ बीमार, कृश और बेकार गायों को ही दान कर रहे हैl उनकी यह आसक्ति देखकर नचिकेता को अचरज हुआ और उसने पिताजी से टोकाl” तात, आप बीमार गायें क्यों दान करा रहे हो ? स्वस्थ गायें क्यों नहीं ? ” पिताजी ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने पूछा “आप मुझे किसे दान करोगे? मैं भी तो आपकी अमानत हूँl”बार-बार पूछने पर पिताजी गुस्सा हो गए और उन्होंने कहाँ ” मैं तुम्हें यमराज को दान करूँगा “ नचिकेता ये आज्ञा मानते हुए यमराज के घर जाने के लिए निकल पड़ाl

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पिताजी के बहुत मना करने पर भी उसने उनकी एक न मानीl आपको बता दें कि नचिकेता अपने बचपन में बहुत हठी बालक था, इसलिए वो अपने पिता की बात को सुनकर यमराज से मिलने के लिए निकल गयाl और वो बालक कुछ समय बाद यमराज के यानी कि यमलोक जा पहुंचा, लेकिन जब वह बालक यमलोक पंहुचा तो यमराज वहाँ नहीं मिलेl क्योंकि यमराज कहीं गए हुए थेl लेकिन वह बालक वहीं बैठकर यमराज का इंतजार करने लगाl यमराज तीन दिन बाद यमलोक बापस लौटे, जब उन्होंने उस बालक को इंतजार करते हुए देखा तो उन्हें बहुत बुरा लगाl बालक को हुई परेशानी कि भरपाई करने के लिए यमराज ने बालक को तीन वर मांगने के लिए कहाl

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उस बालक ने यमराज की आज्ञा का पालन करते हुए पहले वर में पिता के लिए सुख और शांति मांगीl दूसरे वर से अग्नि विद्या का ज्ञान जिसे स्मरण करके स्वर्ग प्राप्त होता है वह माँगाl यमराज ने दोनों वर हसते हुए दे दिएl तीसरे वरदान से बालक ने मृत्यु और ब्रह्मा का रहस्य जानना चाहा तो यमराज ने साफ इंकार कियाl क्योंकि उसे देव भी नहीं जान सकतेl मगर नचिकेता अपनी ज़िद पर अड़े रहेl अंत में यमराज को बालक के हठ के आगे झुकना पड़ाl इस तरह से इस बालक ने यमराज से आत्मज्ञान प्राप्त किया थाl

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