रामायण का जिक्र होते ही रामसेतु पूल का नाम अपने आप जेहन में आ जाता है l सीता को रावण के चुंगल से बचाने के लिए श्रीराम ने वानर सेना की मदद से रामसेतु पूल का निर्माण करवाया था, ये बात तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि अपना ही बनवाया पूल श्रीराम ने खुद तोड़ दिया था l भगवन राम को जब पता चल गया कि सीता को लंका का राजा रावण हरण करके ले गया है तो सबसे बड़ी चुनौती थी। तब श्रीराम ने फैसला किया कि वे स्वयं अपनी सेना के साथ लंका जाकर ही सबको रावण की कैद से छुड़ाएंगे।
सु्ग्रीव से मित्रता होने के बाद हनुमान जी वानरों की टोली लेकर सीता की खोज में चल पड़े। लेकिन चुनौती ये थी की वानर सेना को लेकर 1500 किलोमीटर लंबे समुद्र को किस तरह पार किया जाए। बाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने सबसे पहले सागर का निरिक्षण किया की किस स्थान से पुल बनाना आसान होगा। इसके बाद पुल का निर्माण कार्य आरंभ हुआ।
इस तरह राम की सेना पर कर गयी पूल
पुल का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। लेकिन परेशानी यह आई कि जो भी पत्थर समुद्र में डाले जाते सभी डूब जाते। इससे वानर सेना में निराशा बढ़ने लगी। तब भगवान राम ने सागर से प्रार्थना शुरू की। सागर से कहा कि वह पुल निर्माण के लिए फेंके गए पत्थरों को बांधकर रखे। लेकिन सागर ने विनती नहीं सुनी। राम ने नल और नील के हाथों पुल निर्माण का काम शुरू करवाया। नल और नील को वरदान प्राप्त था कि उनके हाथों से फेंका गया पत्थर पानी में डूबेगा नहीं। बस फिर क्या था देखते ही देखते वानर सेना ने महज पांच दिनों में लंका तक पुल का निर्माण कर दिया। कहते हैं कि निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी।
इस वजह से श्रीराम ने अपना बनाया रामसेतु पूल खुद तोड़ दिया था
पद्म पुराण के अनुसार, अयोध्या का राजा बनने के बाद एक दिन श्रीराम को विभीषण का ख्याल आया l उन्होंने सोचा की रावण के मरने के बाद किस तरह विभिष्ण लंका का शासन कर रहे है, उन्हें कोई परेशानी तो नहीं l फिर भगवन राम ने लंका जाने के लिए सोचा और उनके साथ भरत भी जाने को तैयार हो गये l जब दोनों पुष्पक विमान से लंका जा रहे होते हैं, तो रास्ते में किष्किंधा नगरी आती हैl राम व भरत थोड़ी देर वहां ठहरते हैं और सुग्रीव व अन्य वानरों से भी मिलते हैं l जब सुग्रीव को पता चलता है कि श्रीराम व भरत विभीषण से मिलने लंका जा रहे हैं, तो वे भी उनके साथ हो लेते हैं l रास्ते में श्रीराम भरत को वह रामसेतु पूल दिखाते हैं,जो वानरों व भालुओं ने समुद्र पर बनाया था l जब विभीषण को पता चलता है कि श्रीराम, भरत व सुग्रीव लंका आ रहे हैं तो वे पूरे नगर को सजाने का आदेश देते हैं l विभीषण श्रीराम, भरत व सुग्रीव से मिलकर बहुत खुश होते हैं l
श्रीराम तीन दिन लंका में रुके थे और विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया और कहते हैं कि तुम हमेशा धर्म पूर्वक इस नगर पर राज्य करना l जब श्रीराम अयोध्या जाने के लिए पुष्पक विमान पर बैठते हैं तो विभीषण उनसे कहता है कि भगवान आपने जैसा मुझसे कहा है, ठीक उसी तरह मैं धर्म पूर्वक राज्य करूंगा, लेकिन इस सेतु (पुल) के रास्ते जब मानव यहां आकर मुझे परेशान करेंगे, उस समय मुझे क्या करना चाहिए l बस फिर क्या था विभीषण के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अपने बाणों से उस रामसेतु पूल के दो टुकड़े कर दिए l फिर तीन भाग करके बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया l ताकि विभीषण को भविष्य में किसी तरह की परेशानी न हो l