राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी समर्थित उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों की एकता को तोड़ दिया है. विपक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में दो माह पहले से फील्डिंग कर रहा था लेकिन ऐन मौके पर बिखरने गया. नीतीश के इस कदम को बिहार और राष्ट्रीय राजनीति दोनों में जेडीयू का बीजेपी के प्रति झुकाव के रूप में देखा जा रहा है. नीतीश कुमार खुद भी दलित वोटों के सहारे पिछले तीन पंचवर्षीय से सत्ता पर काबिज हैं. 11 साल पहले उन्होंने दलितों के लिए नई श्रेणी जोड़ी थी. दलितों के लिए कई योजनाएं बिहार में चला रहे हैं. ऐसे में वोट बैंक पर नजर रखकर ही उन्होंने अपने गठबंधन साथी से अलग फैसला किया है.
पार्टी के प्रमुख नेता शरद यादव ने कहा, “हमारा महगठबंधन प्रभावित नहीं होगा.” उन्होंने महागठबंधन के मायने बबाते हुए कहा कि यह ऐसा गुट है जो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ है. जहां तक राष्ट्रपति चुनाव की बात है तो यह बिल्कुल ही अलग मामला है. हालांकि जब राष्ट्रपति चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तो नीतीश ने ही सोनिया गांधी से विपक्ष का उम्मीदवार उतारने की पहल की थी. इस दौरान लालू भी उनके साथ थे. नीतीश ने महागठबंधन को झटका देते हुए नवंबर में नोटबंदी को बेहतर कदम बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी. इससे राजद और कांग्रेस ने अच्छी खासी नाराजगी जताई थी. इसके बाद मार्च में उत्तरप्रदेश में बीजेपी की प्रचंड जीत पर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका की सराहना की थी.