जापान की जनसंख्या 12.7 करोड़ है। इनमें ज्यादातर लोग बौद्ध और शिंतो धर्म के मानने वाले हैं। इसके मुकाबले 70 हजार से एक लाख मुस्लिम आबादी कहीं नहीं ठहरती। इसके बावजूद वहां मुस्लिमों को शक की निगाह से देखा जाता है।2010 में लीक हुए पुलिस डॉक्युमेंट्स के अनुसार, वहां 72 हजार मुस्लिमों की जासूसी की जा रही थी। पुलिस ने इनके नाम-पते के अलावा बैंक डिटेल और गतिविधियों का रिकॉर्ड तैयार किया था।पुलिस की जापान में मस्जिदों और उनके आसपास खुफिया कैमरे लगाने की योजना थी। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि ऐसे कैमरे लगाए भी गए हैं।टोक्यो की कोर्ट ने सरकार द्वारा मुसलमानों की जासूसी को सही मानते हुए इसे ‘जरूरी और अपरिहार्य’ बताया था। ये लोग बहुत ही बुरी लाइफ जी रहे हैं|
यह प्रचार भी गलत है कि जापान में मस्जिद निर्माण पर पाबंदी है। वहां 60 से 80 सिंगल स्टोरी मस्जिदें हैं। इसके अलावा, वहां 100 के करीब फ्लैट्स या घरों के कमरे हैं, जहां सामूहिक रूप से नमाज या प्रार्थना होती है।माना जाता है कि जापान में मुस्लिमों का अागमन 18वीं सदी में शुरू हुआ। जापनी शहर कोबे में 1935 में बनी मस्जिद को वहां का पहला मुस्लिम उपासना स्थल माना जाता है। इसे भारतीय प्रवासियों ने हिंदुस्तानी शैली में बनवाया था। टोक्यो स्थित टोक्यो कैमी सबसे बड़ी मस्जिद है। इसके साथ ही तुर्किश कल्चर सेंटर भी चलता है।
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