अगर भारत OBOR फोरम में अभी अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजता है तो भी इससे भारत को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है क्योंकि OBOR सदस्यता आधारित संगठन नहीं है, बल्कि हो सकता है भविष्य में भारत के इस कदम की तारीफ की जाए कि वह अपने सैद्धांतिक पक्ष पर अडिग रहा। दिल्ली के सूत्रों के मुताबिक, भारत के लिए सबसे अच्छा यह होगा कि वह जूनियर लेवल के राजनयिकों को प्रतिनिधि के तौर पर भेजे और उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों को भेजने से बचे। इस फोरम की बैठक में कुछ भारतीय विशेषज्ञ भी शामिल हो सकते हैं।
बता दें कि इस बैठक में 50 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग लेंगे, जबकि 28 देशों के नेता इसमें शिरकत करने के लिए पहुंच रहे हैं। इन नेताओं में रूस से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हैं। उनके अलावा पश्चिमी देशों में सबसे बड़ा नाम इटली के प्रधानमंत्री पाओलो जेंटिलोनी का है। हालांकि इस बैठक में अमेरिका का भाग लेना एक राजनीतिक फैसला है, लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका इसमें आर्थिक भागेदारी भी निभाने जा रहा है। चीन ने ‘100 डे प्लान’ समझौते के तहत अमेरिकी बीफ खरीदने की प्रतिबद्धता जताई है। दूसरी तरफ अमेरिका अपने यहां चीनी बैंकों को विस्तार के लिए अनुमति प्रदान करेगा।