कि जंगलों में छुपे नक्सलियों का पता लगाने की तकनीक सीआरपीएफ को मुहैया कराई जाए. सुकमा में सीआरपीएफ़ की टीम को बहुत बड़ी तादाद में माओवादियों ने घेर लिया. उनके इकट्ठा होने की भनक तक नहीं लग सकी. आख़िर ऐसा क्यों हुआ? गृह मंत्रालय के सामने बड़ा सवाल ये है कि क्या ये हमला इसलिए मुमकिन हुआ कि सीआरपीएफ के भीतर तय क़ायदों पर अमल नहीं हो रहा.
कि हमला उस पार्टी पर हुआ जिसके जवान खाना खा रहे थे और अलर्ट नहीं थे. फिलहाल बस्तर में सीआरपीएफ के 45,000 जवान हैं, लेकिन जिन हालात में वो काम कर रहे हैं, वो काफी चुनौती भरे हैं. वैसे ये बात बार-बार आती है कि एक अनजान इलाक़े में काम कर रहे जवानों को अगर थकान से और ऐसे हमलों से बचाना है तो उनकी ज़रूरतों का खयाल रखना ज़रूरी है.
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