गोडसे का कहना है कि एक बार देश यहां तक भी गांधी जी के निर्णयों को स्वीकार कर लेता लेकिन वे जिस प्रकार अपनी जिद को मानवता और देश से बड़ी साबित करने के लिए अनश्न की आड़ में ब्लैकमेल कर रहे थे. उसको देखकर उसने तय किया की हिंदू और भारत को बचाने के लिए उसे अपने जीवन में गांधी की हत्या जैसे कर्म भी करना पड़ेगा. गौरतलब है कि गोडसे ने स्वतंत्रता के आंदोलन में गांधी जी के द्वारा उठाए कए कष्टों और उनके योगदान की सराहना भी की है. लेकिन गांधी द्वारा मुस्लिमों को प्रश्न करने के लिए जिस प्रकार एक पक्षीय निर्णय लिए जा रहे थे. उससे गोडसे खुश नहीं था.
यही कारण है कि महात्मा गांधी की हत्या को हत्या न बताकर गोडसे ने उसे वध की संज्ञा दी और अपने इस कार्य के लिए निर्णय इतिहास पर छोड़ दिया कि अगर भविष्य में तटस्थ इतिहास लिखा जाएगा तो वह जरूर इस पर न्याय करेगा.