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दरअसल ये पूरी कहानी समाने आई है वरिष्ठ पत्रकार नीना गोपाल की किताब “दी असेसिनेशन ऑफ़ राजीव गांधी” से| नीना गोपाल वो आखिरी पत्रकार थीं जो हादसे से ठीक पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एम्बेसडर कार में मौजूद थी जिससे वह तमिलनाडु के एक रैली ग्राउंड में पहुंचे थे।
जुलाई 1987, 10 जनपथ देश के प्रधानमंत्री के घर बैठक चल रही थी| प्रधानमंत्री के सामने लिट्टे का सबसे बड़ा कमांडर प्रभाकरण मौजूद था| राजीव गांधी, रॉ और कई खुफिया एजेंसियों के दवाब में प्रभाकरण को शांति समझौते को समर्थन देना पड़ा था जिसके चलते वो अन्दर से तिलमिलाया हुआ था लेकिन उसने ये जाहिर नहीं होने दिया|
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